Tag: हिंदी कहानी
धिक्कार-2 – प्रेमचंद की कहानी
अनाथ और विधवा मानी के लिये जीवन में अब रोने के सिवा दूसरा अवलंब न था। वह पाँच वर्ष की थी, जब पिता का देहांत हो गया। माता ने किसी तरह उसका पालन किया। पूरा पढ़ें...
धिक्कार-1 – प्रेमचंद की कहानी
ईरान और यूनान में घोर संग्राम हो रहा था। ईरानी दिन-दिन बढ़ते जाते थे और यूनान के लिए संकट का सामना था। देश के सारे व्यवसाय बंद हो गये थे, हल की मुठिया पर हाथ रखने वाले किसान तलवार की मुठिया पकड़ने के लिए मजबूर हो गये, डंडी तौलने वाले भाले तौलते थे। पूरा पढ़ें...
दिल की रानी – प्रेमचंद की कहानी
जिस वीर तुर्कों के प्रखर प्रताप से ईसाई दुनिया कौप रही थी , उन्हीं का रक्त आज कुस्तुनतुनिया की गलियों में बह रहा है। पूरा पढ़ें...
देवी – प्रेमचंद की कहानी
बूढ़ों में जो एक तरह की बच्चों की-सी बेशर्मी आ जाती है वह इस वक्त भी तुलिया में न आई थी, यद्यपि उसके सिर के बाल चांदी हो गये थे। और गाल लटक कर दाढ़ों के नीचे आ गये थे। पूरा पढ़ें...
देवी – प्रेमचंद की कहानी
रात भीग चुकी थी। मैं बरामदे में खड़ा था। सामने अमीनुद्दौला पार्क नींद में डूबा खड़ा था। सिर्फ़ एक औरत एक तकियादार बैंच पर बैठी हुई थी। पार्क के बाहर सड़क के किनारे एक फ़कीर खड़ा राहगीरों को दुआएं दे रहा था। पूरा पढ़ें...
दुर्गा का मन्दिरचंद – प्रेमचंद की कहानी
बाबू ब्रजनाथ कानून पढ़ने में मग्न थे, और उनके दोनों बच्चे लड़ाई करने में। श्यामा चिल्लाती, कि मुन्नू मेरी गुड़िया नहीं देता। मुन्नू रोता था कि श्यामा ने मेरी मिठाई खा ली। पूरा पढ़ें...
दण्ड – प्रेमचंद की कहानी
संध्या का समय था। कचहरी उठ गयी थी। अहलकार चपरासी जेबें खनखनाते घर जा रहे थे। मेहतर कूड़े टटोल रहा था कि शायद कहीं पैसे मिल जायें। कचहरी के बरामदों में सांडों ने वकीलों की जगह ले ली थी। पूरा पढ़ें...
तिरसूल – प्रेमचंद की कहानी
अंधेरी रात है, मूसलाधार पानी बरस रहा है। खिड़कियों पर पानीके थप्पड़ लग रहे हैं। कमरे की रोशनी खिड़की से बाहर जाती है तो पानी की बड़ी-बड़ी बूंदें तीरों की तरह नोकदार, लम्बी, मोटी, गिरती हुई नजर आ जाती हैं। पूरा पढ़ें...
तांगेवाले की बड़ – प्रेमचंद की कहानी
लेखक को इलाहाबाद मे एक बार ताँगे मे लम्बा सफर करने का संयोग हुआ। तांगे वाले मियां जम्मन बड़े बातूनी थे। उनकी उम्र पचास के करीब थी, उनकी बड़ से रास्ता इस आसानी से तस हुआ कि कुछ मालूम ही न हुआ। पूरा पढ़ें...
त्रिया चरित्र – प्रेमचंद की कहानी
सेठ लगनदास जी के जीवन की बगिया फलहीन थी। कोई ऐसा मानवीय, आध्यात्मिक या चिकित्सात्मक प्रयत्न न था जो उन्होंने न किया हो। पूरा पढ़ें...