Symbolic image for Rakshabandhan

रक्षाबंधन शुरू होने की कहानियाँ और आज के दौर में इसका महत्व

Symbolic image for Rakshabandhan
सांकेतिक तस्वीर (PC - www.iacrfaz.com)

सावन के पूर्णिमा को भारत सहित कई देशों में रक्षाबंधन का त्यौहार मनाया जाता है. इसमें बहन अपनी भाई के कलाई पर राखी (रक्षा सूत्र) बाँधती है और बदले में भाई अपनी बहन को उसकी रक्षा करने का वचन देता है. इसी बेसिस पर सदियों से यह प्रथा चली आ रही है. इस प्रथा के पीछे अनेक कहानियाँ है जो साबित करती है कि यह पर्व मानव सभ्यता के लिए कितना महत्वपूर्ण रहा है. पहले हम इस त्यौहार से जुड़ी कुछ कहानियों को देखते है फिर बात करेंगे आज के परिवेश की रक्षाबंधन का. महाभारत काल में भी इस त्यौहार का वर्णन किया गया है. इस कड़ी में कई सारी कहानियाँ हैं जो इस त्यौहार के महत्त्व को दिखता है.

1. पौराणिक कहानी 1 - दानवीर राजा बाली, भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी

एक सौ 100 यज्ञ पूर्ण कर लेने पर दानवेन्द्र राजा बलि के मन में स्वर्ग का प्राप्ति की इच्छा बलवती हो गई तो का सिंहासन डोलने लगा। इन्द्र आदि देवताओं ने भगवान विष्णु से रक्षा की प्रार्थना की। भगवान ने वामन अवतार लेकर ब्राह्मण का वेष धारण कर लिया और राजा बलि से भिक्षा मांगने पहुँच गए। उन्होंने बलि से तीन पग भूमि भिक्षा में मांग ली।
बलि के गु्रु शुक्रदेव ने ब्राह्मण रुप धारण किए हुए विष्णु को पहचान लिया और बलि को इस बारे में सावधान कर दिया किंतु दानवेन्द्र राजा बलि अपने वचन से न फिरे और तीन पग भूमि दान कर दी।

सांकेतिक तस्वीर (PC – YouTube)
सांकेतिक तस्वीर (PC – YouTube)

वामन रूप में भगवान ने एक पग में स्वर्ग और दूसरे पग में पृथ्वी को नाप लिया। तीसरा पैर कहाँ रखें? बलि के सामने संकट उत्पन्न हो गया। यदि वह अपना वचन नहीं निभाता तो अधर्म होता। आखिरकार उसने अपना सिर भगवान के आगे कर दिया और कहा तीसरा पग आप मेरे सिर पर रख दीजिए। वामन भगवान ने वैसा ही किया। पैर रखते ही वह रसातल लोक में पहुँच गया।
जब बलि रसातल में चला गया तब बलि ने अपनी भक्ति के बल से भगवान को रात-दिन अपने सामने रहने का वचन ले लिया और भगवान विष्णु को उनका द्वारपाल बनना पड़ा। भगवान के रसातल निवास से परेशान लक्ष्मी जी ने सोचा कि यदि स्वामी रसातल में द्वारपाल बन कर निवास करेंगे तो बैकुंठ लोक का क्या होगा? इस समस्या के समाधान के लिए लक्ष्मी जी को नारद जी ने एक उपाय सुझाया। लक्ष्मी जी ने राजा बलि के पास जाकर उसे रक्षाबन्धन बांधकर अपना भाई बनाया और उपहार स्वरुप अपने पति भगवान विष्णु को अपने साथ ले आयीं। उस दिन श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि थी यथा रक्षा-बंधन मनाया जाने लगा।

2. पौराणिक कहानी 2 - देवराज इंद्र और महारानी शची (भविष्य पुराण)

भविष्य पुराण की एक कथा के अनुसार एक बार देवता और दैत्यों (दानवों ) में बारह वर्षों तक युद्ध हुआ परन्तु देवता विजयी नहीं हुए। इंद्र हार के भय से दु:खी होकर देवगुरु बृहस्पति के पास विमर्श हेतु गए। गुरु बृहस्पति के सुझाव पर इंद्र की पत्नी महारानी शची ने श्रावण शुक्ल पूर्णिमा के दिन विधि-विधान से व्रत करके रक्षासूत्र तैयार किए और स्वास्तिवाचन के साथ ब्राह्मण की उपस्थिति में इंद्राणी ने वह सूत्र इंद्र की दाहिनी कलाई में बांधा जिसके फलस्वरुप इन्द्र सहित समस्त देवताओं की दानवों पर विजय हुई।

सांकेतिक तस्वीर (PC – Wikipedia)
सांकेतिक तस्वीर (PC – Wikipedia)

रक्षा विधान के समय निम्न लिखित मंत्रोच्चार किया गया था जिसका आज भी विधिवत पालन किया जाता है:

"येन बद्धोबली राजा दानवेन्द्रो महाबल: ।
दानवेन्द्रो मा चल मा चल ।।"

इस मंत्र का भावार्थ है कि दानवों के महाबली राजा बलि जिससे बांधे गए थे, उसी से तुम्हें बांधता हूँ। हे रक्षे! (रक्षासूत्र) तुम चलायमान न हो, चलायमान न हो।
यह रक्षा विधान श्रवण मास की पूर्णिमा को प्रातः काल संपन्न किया गया यथा रक्षा-बंधन अस्तित्व में आया और श्रवण मास की पूर्णिमा को मनाया जाने लगा।

3. महाभारत संबंधी कहानी

महाभारत काल में द्रौपदी द्वारा श्री कृष्ण को तथा कुन्ती द्वारा अभिमन्यु को राखी बांधने के वृत्तांत मिलते हैं।

PC – Mahabharat By BR Chopda
PC – Mahabharat By BR Chopda

महाभारत में ही रक्षाबंधन से संबंधित कृष्ण और द्रौपदी का एक और वृत्तांत मिलता है। जब कृष्ण ने सुदर्शन चक्र से शिशुपाल का वध किया तब उनकी तर्जनी में चोट आ गई। द्रौपदी ने उस समय अपनी साड़ी फाड़कर उनकी उँगली पर पट्टी बाँध दी। यह श्रावण मास की पूर्णिमा का दिन था। श्रीकृष्ण ने बाद में द्रौपदी के चीर-हरण के समय उनकी लाज बचाकर भाई का धर्म निभाया था।

4. ऐतिहासिक कहानी 1 - हुमायूँ और रानी कर्मवती

राजपूत जब लड़ाई पर जाते थे तब महिलाएं उनको माथे पर कुमकुम तिलक लगाने के साथ-साथ हाथ में रेशमी धागा भी बाँधती थी। इस विश्वास के साथ कि यह धागा उन्हें विजयश्री के साथ वापस ले आएगा।

Raakhi Ki Laaz
सांकेतिक तस्वीर (PC - krantidoot.in)

राखी के साथ एक और ऐतिहासिक प्रसंग जुड़ा हुआ है। मुग़ल काल के दौर में जब मुग़ल बादशाह हुमायूँ चितौड़ पर आक्रमण करने बढ़ा तो राणा सांगा की विधवा कर्मवती ने हुमायूँ को राखी भेजकर रक्षा वचन ले लिया। हुमायूँ ने इसे स्वीकार करके चितौड़ पर आक्रमण का ख़्याल दिल से निकाल दिया और कालांतर में मुसलमान होते हुए भी राखी की लाज निभाने के लिए चितौड़ की रक्षा हेतु बहादुरशाह के विरूद्ध मेवाड़ की ओर से लड़ते हुए कर्मवती और मेवाड़ राज्य की रक्षा की।

5. ऐतिहासिक कहानी 2 - सिकंदर और राजा पुरूवास

सिकंदर की पत्नी ने अपने पति के हिंदू शत्रु पुरूवास को राखी बाँध कर अपना मुँहबोला भाई बनाया और युद्ध के समय सिकंदर को न मारने का वचन लिया । पुरूवास ने युद्ध के दौरान हाथ में बंधी राखी का और अपनी बहन को दिये हुए वचन का सम्मान करते हुए सिकंदर को जीवनदान दिया।

सिकंदर और राजा पुरूवास fight
सांकेतिक तस्वीर (PC - ageiron.ru)

ऐतिहासिक युग में भी सिकंदर व पोरस ने युद्ध से पूर्व रक्षा-सूत्र की अदला-बदली की थी। युद्ध के दौरान पोरस ने जब सिकंदर पर घातक प्रहार हेतु अपना हाथ उठाया तो रक्षा-सूत्र को देखकर उसके हाथ रुक गए और वह बंदी बना लिया गया। सिकंदर ने भी पोरस के रक्षा-सूत्र की लाज रखते हुए और एक योद्धा की तरह व्यवहार करते हुए उसका राज्य वापस लौटा दिया।

महत्त्व क्या है?

Girls binding Raakhi on Soldier wrists
PC - zeenews.india.com

ऊपर के सभी कहानियों पर गौर करें तो पाते है कि हर जगह रक्षा सूत्रों की वजह से किसी ना किसी की रक्षा की गयी है. लेकिन अगर आज के परिवेश की बात करें तो यह उतना प्रासंगिक नहीं रह जाता है जितना यह सदियों से चला आ रहा है. आज महिलाएँ खुद अपना ख्याल रखने में सक्षम है. आज की बहनें अपने किसी भी भाई से रक्षा करने की प्रॉमिस नहीं चाहती है, क्योंकि वह आज खुद सक्षम हो रही है. हर जगह पर वीमेन इम्पॉवरमेंट का झंडा बुलंद हो रहा है. लड़कियाँ कभी पीछे हुआ करती थी लेकिन अब यह सभी बातें इतिहास हो चुकी है. आज लड़कियाँ अपने भाइयों से रक्षा करने का प्रॉमिस नहीं बल्कि सिर्फ भाई बने रहने की गुहार लगाती है.

तो फिर ये रक्षाबंधन क्यों?

परंपरा है. यह हमारी उन विरासतों में से एक रह गयी है जिसे हम किसी भी कीमत पर गवाँ नहीं सकते. आज के भौतिक युग में लोग इतने व्यस्त हो चुके हैं की अपने छोटे बच्चे को पालने के लिए उन्हें नौकर की ज़रूरत होती है और बाकायदा वो रखते भी हैं. तो ऐसे माहौल में कौन भाई अपने बहन से मिलने का टाइम निकालेगा. बेशक नहीं निकालेगा. लेकिन जब बात राखी की आएगी तो यही राखी उसे उसके बचपन में ले जाएगा जहाँ प्यारी सी बहन हाथों में थाल लिए, थाल में चन्दन और मिठाई लिए अपनी नन्ही हाथों से वो भाई की कलाई पर राखी बाँध रही है और वो मुस्कुरा रहा है.

सांकेतिक तस्वीर
सांकेतिक तस्वीर

इस याद के बाद अगर वो भाई अपने बहन के यहाँ इस व्यस्तता के बावजूद कुछ वक़्त निकालकर जाता है तो इस त्यौहार का होना सार्थक हो जाता है. आपसी स्नेह का पर्व है रक्षाबंधन, अपने पूर्वजों से पाया विरासत है रक्षाबंधन, अपने आने वाले पीढ़ी के लिए छोड़कर जानेवाली अनमोल संपत्ति है रक्षाबंधन जो हमेशा एक दूसरे को बाँधने की बात करता है.

आपको भी रक्षाबंधन की ढेर सारी बधाइयाँ.

ऐसे ही बेजोड़ किस्से -कहानी और कुछ दिलचस्प ख़बरों के लिए आप हमारे साथ बने रहिए. आप हमारे लेटेस्ट अपडेट्स फेसबुक और ट्विटर पर भी पा सकते हैं तो प्लीज पेज को लाइक और फॉलो ज़रूर करें. साथ ही अब आप हमें यूट्यूब पर भी देख सकते हैं.

Leave a Reply