बिहारी पलायन की वीभत्स तस्वीर दिखाती मैथिली शॉर्ट फिल्म "दिवाली"
काम और नौकरीपेशा के सिलसिले में बिहार की आधी से ज्यादा आबादी को बिहार छोड़ना पड़ता है. बिहारी पलायन की सबसे वीभत्स तस्वीर तब सामने आती है जब त्योहारों का मौसम आता है. मतलब दशहरा से लेकर छठ पूजा और फिर कार्तिक पूर्णिमा तक. कितने ही घर जिसमें चिरागों की कमी नहीं है. फला-फूला हुआ पूरा परिवार है लेकिन त्यौहार के समय घर बिलकुल सूना. कुछ इस तरह मानो घर में पहले कभी कोई था ही नहीं. इस पलायन का दोष किसे दें? सरकारी व्यवस्था को या फिर सरकार चुनने वाले बिहारी खुद को?
इक्कीसवीं सदी के शुरुआत में लग रहा था जैसे बिहार ने करवट ले ली हो. अब शायद माहौल कुछ सुधरें. लोगों को रोजगार मिले और फिर बिहारी पलायन रुके. वक़्त के साथ वक़्त बदला लेकिन जो कुछ नहीं बदला वो था बिहार के हालात. चुनावी सरगर्मियां बढ़ती गयी, लोग अपनी राजनैतिक रोटियां सेंकते रहे लेकिन जहाँ ध्यान देने की सबसे ज्यादा ज़रूरत थी वहां किसी ने देखा ही नहीं.
अगर किसी ने देखा तो वो है बिहार की युवा पीढ़ी. वो युवा पीढ़ी जिनमें कुछ बेहतर करने का जूनून है. चाहे फिल्म के माध्यम से ही क्यों ना हो, परिवर्तन तो होनी ही चाहिए. राष्ट्रिय पुरस्कार से सम्मानित फिल्म निर्देशक नितिन नीरा चंद्रा इस दिवाली एक मैथिली शॉर्ट फिल्म लेकर आये हैं जो इन सभी तस्वीरों को बहुत ही खूबसूरती से दिखाती है. सिर्फ सात मिनट की यह फिल्म आपके दिल के अंदर तक घुसने में कामयाब हो जाती है और आपके आँखों में अनायास ही आंसू आ जाते हैं. इस फिल्म को नीचे देखिये: