फिल्म रिव्यू: अवेंजर्स - इनफिनिटी वार
मारवेल स्टूडियोज़ की बाकी फ़िल्में या फिर अवेंजर्स सीरीज की पिछली फ़िल्में जिसने भी देखी है उसे ये तो पक्का अंदाजा हो ही गया होगा की फिल्म की कहानी क्या होने वाली है. ठीक वैसे ही जैसे की पूरी दुनिया ख़तम हो रही हो और पृथ्वी (न्यूयॉर्क) में मौजूद सभी सुपरहीरोज उसे बचाने में लग जाए. यहाँ भी कुछ ऐसा ही है.
फिल्म शुरू होती है टाइटन ग्रह से जहाँ पर थनोस उसे तबाह कर रहा है. थनोस दुनिया की बढ़ती आबादी से परेशान हो चुका है. और उसे संतुलित करने के लिए लोगों को मार रहा है. लेकिन यह सिर्फ एक ग्रह नहीं बाकि पुरे ब्रह्माण्ड में वो यही संतुलन लाना चाहता है. इसके लिए उसे छः पवार स्टोन की ज़रूरत है. दो उसके पास पहले से है और बाकी के चार उसे हासिल करना है. जो सुपरहीरोज के पास है. सभी सुपरहीरोज अब अलग हो चुके है. कुछ का किसी से कोई कनेक्शन भी नहीं है. सभी अपने काम और परिवार में व्यस्त है. यहीं पर थनोस को मौका मिल जाता है सुपर पॉवर बनने का.आगे क्या होता है ये बताना स्पॉइलर होगा.
इस सीरीज के फिल्मों की लम्बाई जब ढाई घंटे की हो तो दर्शकों की उम्मीद चौगुनी हो जाती है. की भई ज़बरदस्त मज़ा आने वाला है. लेकिन इस फिल्म के साथ ऐसा कुछ भी नहीं है.
बीच में फिल्म बहुत स्लो हो जाती है. जहां पर एसी की ठंढी हवा में आपको नींद भी आ सकती है. फिल्म मोशन में तब आती है थॉर वापस पावर में आता है. क्योंकि थॉर और हल्क को थनोस ने पावरलेस बना दिया रहता है और लोकी को मार दिया रहता है.
एज ऑफ़ अल्ट्रॉन में डेवलप किये गए विजन को भी फिल्म में पूरा स्पेस मिला है. डॉक्टर स्ट्रेंज अपने फूल फ्लेवर में आ चुके है. अब वो भी अवेंजर्स का अहम् हिस्सा है.जेरेमी रेनर जैसे तीरंदाज को अवेंजर्स की टीम में ना होना खलता है.
बेशक ही फिल्म में कुछ नए चीजों को दिखाया गया है, जैसी की उम्मीद की जा रही थी. अवेंजर्स के फैन के पास इस फिल्म को मिस करने का कोई बहाना नहीं होगा. बाकि लोग भी एक सॉलिड एंटरटेनमेंट के लिए इसे देख सकते है.
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