Film October Poster

फिल्म रिव्यू: ऑक्टोबर

Film October Poster

कुछ चीजों में आप फायदा देखते है. कुछ चीजों में आप नुकसान देखते है. लेकिन आज के इस भौतिक परिवेश में बहुत कम चीजें ऐसी है जिसमें आप प्यार और सिर्फ प्यार ही देखते है. ऐसे ही एक प्यार की कहानी है ऑक्टोबर. एक अनकही प्रेम कहानी. जो ना होते हुए भी है. जो न दिखते हुए भी दिखती है. ज्यादा भूमिका नहीं बांधते है और सीधे फिल्म की बात पर आते है. . .

कहानी:

होटल मैनेजमेंट के कुछ स्टूडेंट्स का ग्रुप है जो कि दिल्ली के एक फाइव स्टार होटल में इंटर्न है. ग्रुप में लड़के और लड़कियाँ दोनों है. उसी में एक है दानिश वालिया उर्फ़ डैन (वरुण धवन). और एक लड़की है शिउली (बनिता संधू). सब आपस में दोस्त है. न्यू ईयर के शाम को सब दोस्त होटल के टेरेस पर छोटी सी पार्टी मना रही होती है. क्योंकि डैन वहां नहीं होता है तो शिउली अपने फ्रेंड सब से पूछती है की व्हेयर इज डैन. .?? और इतना कहते हुए ही वो वहां से फिसल जाती है.

Film Aktoobar - केयरलेस डैन
केयरलेस डैन

वो डीप मेडिकल ट्रीटमेंट में चली जाती है. ना बोल सकती है, ना सुन सकती है. बस ज़िंदा है ये समझ लो. सब दोस्त उनसे मिलने आते रहते है. इसी बिच शिउली की बेस्ट फ्रेंड जो कि इसी ग्रुप की है वो डैन को बताती है कि एक्सीडेंट से पहले शिउली ने तेरे बारे में पूछा था. अब डैन ये जानने को बेचैन हो उठता है कि आखिर क्यों पूछा था. डैन को जवाब मिलता है कि नहीं, शिउली का क्या होता है. इसी की कहानी है ओक्टोबर.

एक्टिंग:

वरुण धवन अपने आठ साल के फ़िल्मी कैरियर में एक से बड़ी एक हिट फ़िल्में दी है. उनकी एक भी फिल्म अब ताक फ्लॉप नहीं हुई है. कॉमर्शियल हीरो के रूप में वो अपने आप को स्थापित कर चुके है. उनकी कुछ फ़िल्में सौ करोड़ी क्लब में भी शामिल है. तो ये फिल्म चुनने की वजह क्या रही होगी ? हम बताते है आपको इसकी ये वजह रही होगी:

  1. वरुण धवन अब शायद हीरो से एक्टर बनना चाहते होंगे.
  2. वो अपने खाते में कुछ ऐसी फ़िल्में भी जोड़ना चाहते होंगे जो वक्त बीतने के बाद भी देखा जा सके.
  3. बदलापुर करके उनसे कोई गलती नहीं हुई होगी, वो ये बताना चाहते होंगे.

ऊपर लिखी इन सब बातों का मतलब ये है कि इस फिल्म में वरुण ने अपनी अब तक की सबसे खूबसूरत परफॉर्मेंस दी है. इतने संवेदनशील किरदार को इतनी आसानी से परेड पर इस परिपक्वता के साथ निभाना कोई आसान काम नहीं है. क्या रणबीर कपूर के बाद वरुण में भी आर्ट फिल्मों के हीरो बनने की गुंजाइश है. अपनी अदाकारी से ऐसे सवाल छोड़ जाते है वरुण धवन.

फिल्म के एक इंटेंस सीन में वरुण और बनिता
फिल्म के एक इंटेंस सीन में वरुण और बनिता

शिउली के किरदार से डेब्यू कर रही बनिता संधू के हिम्मत की दाद देनी होगी. क्योंकि कोई भी आउटसाइडर इस तरह के रोल के साथ डेब्यू करने का जोखिम कभी नहीं उठाएगी. हाँलाकि किरदार डायलॉग से जस्टिफाई होता है लेकिन कम संवाद के बावजूद भी बनिता ने अपने हिस्से के पुरे मार्क्स कमाई है. सिर्फ अपने एक्सप्रेशन से.

बाकि फिल्म में गीतांजलि राव भी है जो शिउली के माँ के किरदार में है. बहुत ही उम्दा अदाकारी. साथ ही कुछ सपोर्टिंग कास्ट भी है जो अंत तक फिल्म में होते है. और किसी की एक्टिंग अखरती नहीं है.

गीत - संगीत:

ट्रेलर में और फिल्म रिलीज के पहले सभी गाने यूट्यूब पर रिलीज किये जा चुके है. गानों के व्यूज भी मिलियन्स में है. लेकिन फिल्म में गीत को रखने की जगह ही नहीं थी. बैकग्राउंड स्कोर ही फिल्म के लिए काफी दिखता है. रहत फ़तेह अली खान का तब भी तू सबके प्लेलिस्ट की शोभा बढ़ा रहा है. दिल को सुकून ऐसे ही गानों से मिलता है.

लेखन - निर्देशन:

जब राइटर - डायरेक्टर की जोड़ी जमती है तो क्या होता है इसके कुछ उदाहरण है, ३ इडियट्स, तनु वेड्स मनु सीरीज, शाहिद, अलीगढ, इत्यादि. ये बातें यहाँ बताना इसीलिए जरुरी है क्योनी इस फिल्म को लिखी है जूही चतुर्वेदी ने. जो शूजित सरकार की पिछली फ़िल्में विकी डोनर और पीकू भी लिख चुकी है. और दोनों फिल्मों ने सफलता के नए झंडे गाड़े थे. ये इस जोड़ी की तीसरी फील है.

शूजित और जूही: ये जोड़ी कमाल है
शूजित और जूही: ये जोड़ी कमाल है

इतनी बारीकी से पटकथा पर काम किया गया है जो की लाजवाब है. फ़ालतू की बकवास से परहेज किया गया है. जो प्लॉट लेकर वो चली है उसी को लेकर आगे बढ़ी है. ये फिल्म पैसा कमाने के मकसद से नहीं बनाया गया है. लेखिका के पास एक कहानी थी जिसे वो कहना चाहती थी. और शूजित तो कहानी कहने में माहिर है ही. डैन और शिउली के माँ के बिच में जो केमिस्ट्री लिखी गयी है वो किसी भी राइटर के लिए बड़ी उपलब्धि है. सो एक बार फिर से एक खूबसूरत फिल्म बनी है.

मेकिंग

किसी भी फिल्म को बनने के लिए सबसे पहला और आखिरी काम जो होता है वो यही होता है. प्रिंसिपल फोटोग्राफी से लेकर लास्ट के एडिटिंग तक. सिनेमैटोग्राफी के लिए अब तक तीन नेशनल अवार्ड अपने नाम करने वाले बंगाल के अविक मुखोपाध्याय ने हर सीन में सिर्फ प्यार परोसा है. छोटी - छोटी चीजों का क्लोजअप लिया गया है जो की देखने में बेहद खूबसूरत लगता है. दिल्ली की सर्द सुबह से शुरू होती फिल्म पूरी तरह से दिल्ली में रच बस गयी है. डियर पार्क से लेकर धुंधली सुबह तक हर जगह को बेहद करीने से दिखाया गया है. मुझे याद नहीं पिछली बार किस फिल्म में दिल्ली इतनी खूबसूरत लगी थी. हाँ वहीं जब हॉस्पिटल में ऑपरेशन के दौरान क्लोजअप दिखाया जाता है तो मुझ जैसे कमजोर दिलवाले को बहुत बुरा लगता है. मगर ये दिखाना ज़रूरी था. नहीं तो लोगों को शिउली के दर्द का पता कैसे चलता. ट्रेलर में कई ऐसे सीन है जो फिल्म में नहीं है. लेकिन थियेटर के अंदर आपको ये बात याद नहीं रहता है.

फिल्म में एक और अहम् किरदार है शिउली का फूल (हरसिंगार या नाईट जास्मीन को बंगाली में शिउली कहा जाता है). कई जगहों पर इस फूल को रातों की रानी भी कहा जाता है. यह फूल बहुत ही कम समय के लिए पेड़ पर होते है. सुबह तड़के ही गिर जाता है. ऑक्टोबर महीने से यह फूल पेड़ पर लगना शुरू हो जाता है.

फूल फिल्म में क्या किरदार निभा रहा है यह देखकर ही पता चलेगा. बॉलीवुड में ऐसी संवेनशील फ़िल्में कम ही बनती है. इस फिल्म में सिर्फ तीन चीज है: प्यार, प्यार और प्यार. बर्फी के बाद शायद पहली बार. देखने लायक फिल्म बानी है. परिवार के साथ.

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