फिल्म रिव्यू: राज़ी
इस साल की मोस्ट अवेटिंग फिल्मों के लिस्ट में यह फिल्म भी शामिल थी. आज रिलीज हो गयी. एक तो लेडी स्पाई वाली फ़िल्में हमारे यहाँ कम बनती है और ऊपर से मेघना गुलज़ार का निर्देशन. लोगों में उत्सुकता तो होनी ही थी. आइए बात करते है. . .
कहानी
फिल्म एक 20 साल की लड़की की है जो कश्मीर की है. माँ-बाप की एकलौती संतान है और दिल्ली यूनिवर्सिटी में पढ़ती है. बहुत ही सहज, सरल और प्यारी सी बच्ची. नाम है सहमत. जिसका किरदार आलिया भट्ट निभा रही है. सहमत के अब्बू भारत के लिए जासूसी करते है. उनके अब्बू के अब्बू यानी की सहमत के दादाजी भी यही काम करते थे. वह सब से ऊपर अपने वतन को मानते है. इस फिल्म को हरिंदर सिक्का की किताब कॉलिंग सहमत के आधार पर बनाया गया है. जो एक भारतीय महिला जासूस के बहादुरी के किस्से को बताता है.
निर्देशिका मेघना गुलज़ार ने इस फिल्म को एक ही सेंटेंस में समराईज कर दिया है - वतन के आगे कुछ भी नहीं, खुद भी नहीं.
साल 1971. दोनों मुल्कों, भारत और पाकिस्तान में तनाव बढ़ रहा है. इस बात का इल्म सहमत के अब्बू हिदायत (रजित कपूर) को हो जाता है. यह बात वह भारतीय इंटेलिजेंस ब्यूरो में बड़े अधिकारी खालिद मीर (जयदीप अहलावत) को बताता है. लेकिन अब समस्या ये है कि हिदायत बीमार हो चुका है. अब और काम करने में सक्षम नहीं है. इसीलिए इस काम को पूरा करने के लिए वह अपनी बेटी को बोलता है. बेटी तैयार जो जाती है. हिदायत अपने पाकिस्तानी मित्र ब्रिगेडियर सैयद (शिशिर शर्मा) से जब सहमत की शादी की बात उनके छोटे बेटे इकबाल (विकी कौशल) से करने को कहते है तो वो राज़ी हो जाते है. सहमत भारतीय जाजूस और सैयद खानदान की बहू बनकर पाकिस्तान में कैसे रहती है. वहां उसे कामयाबी मिलती भी है नहीं. इसी की कहानी है राज़ी. आगे कुछ और बताऊंगा तो स्पॉयलर हो जाएगा. एंड आई हेट स्पॉयलर पुष्पा.
एक्टिंग
आलिया भट्ट अभी लगातार अच्छा काम कर रही है. वह सिर्फ ग्लैमर ही नहीं बाकी विधाओं को भी परदे पर जी सकती है इस बात को वह उड़ता पंजाब में साबित कर चुकी है. उनके पिता महेश भट्ट खुद अपनी खानदान की सबसे बेहतर एक्टर में आलिया को गिनते है. आलिया ने राज़ी में इस बात को लगभग हर दृश्य में प्रूव किया है. एक लड़की जो कॉलेज के दिनों में अपना खून देखकर भी उलटी कर देती थी वह वक़्त के साथ ऐसी बदलती है कि गाड़ी से लोगों को कुचलने में तनिक भी नहीं सोचती है. मज़बूरी का वह भाव उनके चेहरे पर देखते ही बनता है. कुल मिलाकर यह पूरी तरह से आलिया भट्ट की फिल्म है, जिसे आलिया ने बहुत अच्छे से अंजाम दिया है.
सहमत के पति के रोल में विकी कौशल के पास छोटा मगर अहम् किरदार है. एक परिपक्व पति की, जो हमेशा अपने हिन्दुस्तानी पत्नी को सम्मान देना चाहता है, और बकायदा देता भी है. क्लाईमैक्स का वो सीन आप समेटकर घर ले जा सकते है जब इकबाल अपनी पत्नी से पूछता है: अब तक हमारे बीच जो भी कुछ हुआ, उसमें कितना सच है? उस वक़्त आप सरहद को भूलकर सिर्फ प्यार को देखने लग जाते है. विकी आने वाले समय में अच्छे अभिनेता के तौर पर गिने जाएंगे इसमें कोई दोराय नहीं है.
टीवीएफ के परमानेंट रूममेट्स वाले तान्या के पापा याद है. द कूल गाय. वो यहाँ इकबाल के पापा बने है. छोटे मगर अहम् किरदारों में रजित कपूर और शिशिर शर्मा ने एकदम से परफेक्ट काम किया है. हमेशा की तरह. आलिया की रियल माँ सोनी राजदान यहाँ उनकी रील माँ भी बनी है. सभी किरदार सटीक है. कुछ भी अटपटा नहीं लगता. जयदीप अहलावत अपने काम को मज़बूती से अंजाम दिए है. आसिफ जकारिया का कैमियो हैरान करने वाला है.
गीत-संगीत
फिल्म को जितने गीतों की ज़रुरत थी उतने ही गीतों को रखा गया है. दिलबरो आपके प्लेलिस्ट में ज़रूर होगा. बेटी की विदाई वाला कर्णप्रिय गीत है. ऐ वतन को जब अरिजीत सिंह गाते है तब गूजबंप्स होता है. और टाइटल ट्रैक भी फिल्म के साथ बहती रहती है. फिल्म के गीत मेघना के पापा गुलज़ार साहब लिखे है. संगीत शंकर-एहसान-लॉय का है. बैकग्राउंड स्कोर को लाउड नहीं रखा है, जो फिल्म के ट्रीटमेंट को बेहतर बनाती है.
दिलबरो गीत को यहाँ देखिए:
लेखन - निर्देशन - मेकिंग
भवानी अय्यर के साथ मिलकर मेघना इस फिल्म के स्क्रिप्ट को लिखी है. भवानी की लेखनी में संवेदना का एक अलग स्थान रहता है. इस बात को फिल्म ब्लैक, गुजारिश और लूटेरा में देखा जा सकता है. राज़ी भी इसी कड़ी की अगली फिल्म है. क्योंकि फिल्म किताब पर बेस्ड है इसीलिए इससे ज्यादा छेड़छाड़ नहीं की जा सकती. इसी वजह से क्लाईमैक्स थोड़ा ढीला पड़ गया है. लेकिन आपको अखड़ता नहीं है.
तलवार के बाद भावना से जैसी फिल्म की उम्मीद की जा सकती थी, बिलकुल वैसी ही फिल्म दर्शकों के सामने परोसी गयी है. कमाल का निर्देशन. फिल्म में खालिद मीर जब सहमत से कहता है की जंग में कुछ और नहीं सिर्फ जंग होता है. तब शायद मेघना यहाँ अपना मैसेज क्लियर करना चाह रही है.
सिनेमैटोग्राफी को इस फिल्म के लिहाज से एक अलग नज़र से देखी जानी चाहिए. फिल्म की शूटिंग कश्मीर में ज़रूर हुई है लेकिन बर्फीली पहाड़ियों को दिखने से परहेज किया गया है. क्योंकि यहाँ जासूस घर में रहकर काम कर रही है. इसके पुरे अंक मिलेंगे.
वैसे तो फिल्म का बिजनेस बहुत चीजों पर निर्भर करता है लेकिन अगर आप अच्छी फिल्मों के शौक़ीन है तो इस फिल्म को मिस नहीं कर सकते. परिवार के साथ जाइये. अच्छा लगेगा.