कहानी – देवता का बन्द मंदिर
एक दिन शहंशाह अपने दरबार मे बैठे लोगों से धर्म के मसले पर बात कर रहे थे –
दरबारी – जहाँ पना, हमे लगता है कि हमे पीर, पैगम्बरों, साधु, संतों की सेवा करनी चाहिये, क्योंकि उन्ही के ज़रिए हमारी सारी मुरादें पूरी होती हैं। एक वही ऐसे लोग होते हैं जो हमारे हक में दुआ करते हैं। तभी हमारी मुरादें पूरी होती हैं।
अकबर – हाँ, क्यूँ नही! हम तो उन सभी का बहुत अच्छे से ख्याल रखते हैं। हम बहुत बड़ी तादात में दान पुण्य, अनाज, कपड़े आदि दान करते हैं और साधु संतों को खाना खिलाते हैं। क्योंकि हम जानते हैं, इनके जरिये ही हमारी मुरादे पूरी होती हैं। लेकिन बीरबल आप फिर चुप बैठे हैं।
हमें लगता है आप हमारी बात से सहमत नहीं हैं। क्या आप नही मानते कि साधू संत के ज़रिए हमारी मुरादे पूरी होती हैं।
बीरबल – जी! जहाँ पना मुझे ऐसा बिल्कुल नहीं लगता, कि हमारी मुराद किसी साधू, सन्तो द्वारा पूरी होती हैं।
अकबर – क्या, तुम कहना क्या चाहते हो, लाखो लोगो की मुरादें इन जगहों पर ही पूरी होती हैं और तुम्हे नही लगता इनके जरिए हमारी मुरादें पूरी होती हैं।
बीरबल – जहाँ पना मेरा मानना है, किसी मंदिरों और साधू सन्यासियों और सन्तो पर लोगो का विश्वास ही होता है, जो लोगो की मुरादें पूरी होतीं हैं। विश्वास ही असली वजह है, जिसकी वजह से लोगों की मुरादें पूरी होती हैं और कुछ नही।
अकबर – क्या तुम्हें ऐसा लगता है, सिर्फ विश्वास की वजह से मुरादें पूरी होती हैं, तो फिर तुम साबित करके दिखाओ।
दरबारी – जहाँ पना हद है, अपने आपको सबसे अलग साबित करने के लिए बीरबल कुछ भी बोलते हैं।
बीरबल – जहाँ पना मेरा मकसद किसी भी मंदिर या साधु संत का अपमान करने का नही था, मैं तो सिर्फ यही बताने की कोशिश कर रहा हूँ कि इंसान का विश्वास ही होता है जिससे मुरादें पूरी होती हैं।
अकबर – तुम ये कैसे कह सकते हो, अगर ऐसा है तो हमे साबित करके दिखाओ, अगर तुम ये साबित नही कर पाए तो अभी इसी वक्त इस अपमान के लिए तुम्हे माफी मांगनी होगी।
बीरबल – जहाँ पना मेरा मकसद आपके दिल को ठेस पहुचाना नही है, मैं आपको साबित करके दिखाऊंगा। विश्वास ही सब कुछ है जहां पना इसके लिए मुझे दो महीने का वक्त चाहिये।
अकबर – क्या दो महीने! ठीक है, तुम्हे दो महीने का वक्त दिया, लेकिन इस बार तुम कुछ भी साबित नही कर पाओगे। चाहें दो महीने का वक्त ले लो या दो सौ साल का। इस बार तुम्हारी हार पक्की है, लेकिन अगर तुम ये बात साबित नही कर पाए, तो हम तुम्हे सल्तनत से निकाल देंगे।
बीरबल – ठीक है जहाँ पना।
बीरबल ये कह कर दरबार से बाहर चले जाते हैं और सोचने लगते हैं, किस तरह अपनी बात को साबित किया जाए। कुछ देर सोचने के बाद वह अपने नौकर सेवक राम को बुलाते हैं –
बीरबल – सेवकराम यहां आओ।
सेवक राम – जी जनाव कहिए क्या काम है।
बीरबल – हमारी यमुना नदी के किनारे जो ज़मीन है, उस पर हमें मंदिर बनबाना है, मंदिर एक महीने में तैयार होना चाहिए। तुम मज़दूरों का इंतज़ाम करो, लेकिन ध्यान रहे मंदिर बहुत ज़्यादा बड़ा नही होना चाहिये, मंदिर बहुत खूबसूरत और शानदार होना चाहिये।
सेवकराम – जनाब मंदिर एक महीने में तैयार करना है तो बहुत सारे मज़दूर लगेंगे।
बीरबल – चाहें कितने भी मज़दूर लगें लगाओ, लेकिन मंदिर एक महीने में तैयार हो जाना चाहिये।
और फिर एक महीने में छोटा सा और बहुत शानदार मंदिर बन कर तैयार हो जाता है।
बीरबल – बहुत बढ़िया सेवक राम बहुत खूब सूरत है। अब सेवकराम इस मंदिर के बारे में सभी जगहों पर अच्छी अच्छी बातें फैला दो। लोगो से इस मंदिर के चमत्कारों के बारे में कहो। लोगों को बताओ इस मंदिर में सभी की मुरादें पूरी होती हैं और इस मंदिर को बंद मूर्ति का मंदिर नाम दो।
सेवक राम – बन्द मूर्ति वाला मंदिर! ये मंदिर अपने नाम से ही अदभुत होगा। बहुत अच्छा सोचा है आपने, मैं कुछ काना फूसी करने वाले लोगो को जानता हूँ, वह आग की तरह ये खबर लोगो मे फैला देंगे।
बीरबल -ये काम जल्दी शुरू करो सेवकराम।
सेवकराम – जी जनाब!
ये खबर लोगो मे आग की तरह फैल गई और दूर-दूर से लोग इस मंदिर के दर्शन के लिए आने लगे। और ये बात शहंशाह अकबर तक पहुँच गई। एक दिन शहंशाह अपने दरबार मे बैठे हुए थे, तभी वहाँ बैठे दरबारी बोले –
दरबारी – जहाँ पना आपने बन्द मूर्ति वाले मंदिर के बारे में सुना है। जहाँ पना उस मंदिर में बड़े-बड़े चमत्कार होते हैं और बहुत से लोगों की मुरादें पूरी होती हैं।
अकबर – हाँ, हमने उस मंदिर के बारे में सुना है, बीरबल तुम क्या कहते हो उस मंदिर के बारे में।
बीरबल – जी, जहां पना मैं जानता हूँ, वो बहुत चमत्कारी मंदिर है, वहाँ बहुत से लोगो की मुरादें पूरी होती हैं।
अकबर – क्या आप बीरबल हमारे साथ उस मंदिर में जाना पसंद करंगे और हां बीरबल अभी तक आपने अपनी बात साबित नही की है।
बीरबल – मेरी खुशकिस्मती होगी आपके साथ उस मंदिर में जाने की और रही बात मेरी बात साबित करने की आप चलिए तो सही मंदिर।
अकबर – हम मंदिर में जाकर पश्चिम में चल रही जंग की फतह की दुआ मांगेंगे, हम वह जंग जीत जाएं।
तभी बीरबल और शहंशाह, मंदिर के दर्शन के लिए चल देते हैं। मंदिर में पहुंच कर अकबर दुआ मांगते हैं।
अकबर – हम आज इस मंदिर में दुआ मांगते हैं, कि हम पश्चिम में चल रही जंग जीत जाएं।
तभी वहाँ एक सिपाही भागा भागा आता है –
सिपाही – जहाँ पना, जहाँ पना, आपके लिए खुश खबरी लाया हूँ, हम पश्चिम में चल रही जंग जीत गए। वहाँ के राजा ने हथियार डाल दिये हैं।
अकबर – देखा बीरबल, हम सही साबित हुए, हमने आपसे कहा था, इन जगहों पर ही दुआयें कुबूल होती हैं। अब आप क्या कहते हैं।
बीरबल – बीरबल मैं अब भी इस बात को नही मानता, मैं विश्वास को ही सबसे बड़ी शक्ति मानता हूँ।
अकबर – क्या तुम होश में तो हो, इतना बड़ा सबूत देख कर भी तुम्हे यकीन नहीं हो रहा है।
बीरबल – जहाँ पना! जरा आप इस मंदिर का दरवाजा खोल कर उस मूर्ति को तो बाहर लाइये, आप सब समझ जाएंगे।
अकबर उस मंदिर का दरवाजा खोलते हैं और वहाँ एक कपड़े में रखी वस्तु उठा कर बाहर लाते हैं।
बीरबल – जहाँ पना इस कपड़े को ज़रा हटाइये तो।
अकबर उस कपड़े को हटाते हैं और कहते हैं –
अकबर – ये क्या मज़ाक है, ये तो हमारा पसंदीदा फूलदान है, जो हमे एक चीनी यात्री ने दिया था। ये यहाँ कैसे आया। ये कई दिनों से हमारे कमरे से गायब है। ये यहाँ क्या कर रहा है। इससे क्या साबित होता है, हम आपकी शक्ल भी नही देखना चाहते।
बीरबल – जहाँ पना मैं आपको सब समझाता हूँ, दरसल ये मंदिर मैंने बनबाया है और ये फूलदान मैं ही आपके कमरे से लाया हूँ। (बीरबल अकबर को बताते हैं उन्होंने मंदिर कैसे और क्यूँ बनबाया पूरा वाक्य बताते हैं।)
अब तो आप जहाँ पना समझ गए होंगे, विश्वास से ही सारी मुरादे पूरी होती हैं, एक विश्वास ही है जो सबसे बड़ी शक्ति है।
अकबर – हाँ बीरबल हम समझ गए, बहुत खूब बीरबल, वाकई विश्वास से बड़ी कोई शक्ति नही होती है, न कोई मंदिर, न ही कोई साधु संत, लेकिन अब इस मंदिर का क्या करेंगे।
बीरबल – जहां पना क्यों न इस मंदिर को बाहर से आने बाले मुसाफिरों के ठहरने के लिए सराय या धर्मशाला बना दिया जाए।
अकबर – बहुत खूब बीरबल! बहुत खूब! हम ऐसा ही करेंगे। बीरबल वाकई तुम्हारा जबाब नही, बहुत अच्छा काम किया बहुत बढ़िया।
बीरबल = शुक्रिया जहाँ पना
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