40 evergreen shayari of Mirza Ghalib

कोई दिन गर ज़िंदगानी और है

मिर्ज़ा ग़ालिब की वो शायरी, जिसको पढ़कर गुलज़ार हो जाएंगे

कोई दिन गर ज़िंदगानी और है
अपने जी में हमने ठानी और है

आतिश -ऐ -दोज़ख में ये गर्मी कहाँ
सोज़-ऐ -गम है निहानी और है

बारह देखीं हैं उन की रंजिशें ,
पर कुछ अब के सरगिरानी और है

देके खत मुँह देखता है नामाबर ,
कुछ तो पैगाम -ऐ -ज़बानी और है

हो चुकीं ‘ग़ालिब’ बलायें सब तमाम ,
एक मर्ग -ऐ -नागहानी और है .

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