जानिए सिंदबाद जहाजी और उनके समुद्री यात्राओं को
सिंदबाद जहाजी के किस्से बहुत ही प्रेरणादायक और बहादुरी से भरे हुए है। वह एक जहाजी था जो समंदर के रास्ते व्यापार करता था। सिंदबाद ने अपने जीवनकाल में कई सारी समुद्री यात्राएं की जिसमें उसके सामने अनेक तरह के कठिनाई भी आयी। वो हर तरह के मुसीबत को बहादुरी से सामना करता और फिर आगे बढ़ जाता। सिंदबाद के समुद्री यात्रा के कई सारे किस्से मशहूर है लेकिन उसके यात्रा की जो सात किस्से हैं वो पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है।
सिंदबाद जहाजी सच में कोई था या फिर यह एक कहानी भर है?
यह सवाल अनायास ही लोगों के मन में आ जाता है जब वो सिंदबाद के बहादुरी के किस्से को सुनता है। लेकिन हम यहाँ इस बात को बिलकुल साफ़ कर दे रहे हैं कि सिंदबाद मात्र एक काल्पनिक किरदार है जो “वन थाउजैंड एंड वन नाइट्स” कहानी के सीरीज के अहम् पात्र हैं। वन थाउजैंड एंड वन नाइट्स चौदहवीं सदी में अरब देशों में काफी प्रचलित था लेकिन सत्रहवीं और अठारहवीं सदी आते-आते यह दुनियाभर में फैल गया। क्योंकि यही वो वक़्त था जब सिंदबाद के बहादुरी और उसके समुद्री यात्राओं के कहानी को इसमें जोड़ा गया।
कहानी के अनुसार सिंदबाद मूल रूप से बग़दाद का रहने वाला था। पूर्वी अफ्रीका और दक्षिणी एशिया के समुद्रों में उसने कुल सात यात्राएं की। इन यात्राओं के दौरान उनका सामना कई जादुई राज्यों, विशालकाय समुद्री जानवरों और अलौकिक घटनाओं से हुआ। अपनी बहादुरी से वो हर बार मुश्किल परिस्थियों से बाहर निकला और अपने देश वापस लौटा। “वन थाउजैंड एंड वन नाइट्स” या फिर “अरबियन नाइट्स” की कहानी पर दुनिया भर में तमाम तरह के फिल्में, टीवी सीरीज और एनिमेशन्स बन चुके हैं। इसी कहानी पर आधारित भारत में भी एक धारावाहिक बन चुकी है जिसे “आलिफ लैला” नाम से दूरदर्शन पर साल 1993 से 1997 के बीच प्रसारित किया गया था। इसको रामानंद सागर लिखे थे। आनंद सागर, मोती सागर और प्रेम सागर ने मिलकर इस धारावाहिक को निर्देशित किया था। ये वही सागर बंधू हैं जिन्होंने टीवी पर सबसे पहले “रामायण” बनाया था।
सिंदबाद जहाजी के किस्से की इस सीरीज में हम आपको उनकी सातों यात्राओं की कहानी बताने वाले है। सिंदबाद जहाजी के बहादुरी के यह किस्से उम्मीद है आप सभी को बहुत पसंद आने वाले हैं।
सिंदबाद और हिंदबाद की एक यह कहानी भी बहुत प्रसिद्ध है.
जब शहरजाद ने यह कहानी पूरी की तो शहरयार ने, जिसे सारी कहानियाँ बड़ी रोचक लगी थीं, पूछा कि तुम्हें कोई और कहानी भी आती हैं। शहरजाद ने कहा कि बहुत कहानियाँ आती हैं। यह कह कर उसने सिंदबाद जहाजी की कहानी शुरू कर दी।
उसने कहा कि इसी खलीफा हारूँ रशीद के शासन काल में एक गरीब मजदूर रहता था जिसका नाम हिंदबाद था। एक दिन जब बहुत गर्मी पड़ रही थी वह एक भारी बोझा उठा कर शहर के एक भाग से दूसरे भाग में जा रहा था। रास्ते में थक कर उसने एक गली में, जिसमें गुलाब जल का छिड़काव किया हुआ था और जहाँ ठंडी हवा आ रही थी, उतारा और एक बड़े-से घर की दीवार के साए में सुस्ताने के लिए बैठ गया। उस घर से इत्र, फुलेल और नाना प्रकार की अन्य सुगंधियाँ आ रही थीं, इसके साथ ही एक ओर से पक्षियों का मनोहर कलरव सुनाई दे रहा था और दूसरी ओर, जहाँ रसोईघर था, नाना प्रकार के व्यंजनों के पकने की सुगंध आ रही थी। उसने सोचा कि यह तो किसी बहुत बड़े आदमी का मकान मालूम होता है, जानना चाहिए कि किस का है।
मकान के दरवाजे से कई सेवक आ जा-रहे थे। मजदूर ने उन में से एक से पूछा कि इस घर का स्वामी कौन है। सेवक ने कहा, बड़े आश्चर्य की बात है तू बगदाद का निवासी है और इस घर के परम प्रसिद्ध मालिक को नहीं जानता। यह घर सिंदबाद जहाजी का है जो लाखों बल्कि करोड़ों की संपत्ति का मालिक है।
हिंदबाद ने यह सुनकर आकाश की ओर हाथ उठाए और कहा, ‘हे संसार को उत्पन्न करने वाले और पालने वाले भगवान, यह क्या अन्याय है। एक यह सिंदबाद है जो रात-दिन ऐश करता है, एक मैं हूँ हिंदबाद जो रात-दिन जानतोड़ परिश्रम करके किसी प्रकार अपने स्त्री-बच्चों का पेट पालता हूँ। यह और मैं दोनों मनुष्य हैं। क्या अंतर है?’ यह कह कर उसने जैसे भगवान पर अपना रोष प्रकट करने के लिए पृथ्वी पर पाँव पटका और सिर हिलाकर निराशापूर्वक अपने दुर्भाग्य पर दुख करने लगा।
इतने में उस विशाल भवन से एक सेवक निकला और उसकी बाँह पकड़कर बोला, ‘चल अंदर, हमारे मालिक सिंदबाद ने तुझे बुलाया है।’ हिंदबाद यह सुनकर बहुत डरा। उसने सोचा कि मैंने जो कहा वह सिंदबाद ने सुन लिया है और क्रुद्ध होकर मुझे बुला भेजा है ताकि मुझे इस गुस्ताखी के लिए सजा दे। वह घबराकर कहने लगा कि मैं अंदर नहीं जाऊँगा, मेरा बोझा यहाँ पड़ा है, उसे कोई उठा ले जाएगा। किंतु सेवकों ने उसे न छोड़ा। उन्होंने कहा कि तेरे बोझे को हम सुरक्षापूर्वक अंदर रख देंगे और तुझे भी कोई नुकसान नहीं होगा। हिंदबाद ने बहुत देर तक सेवकों से वाद-विवाद किया किंतु उसका कोई फल न निकला और अंततः उसे उनके साथ महल के अंदर जाना ही पड़ा।
सेवक हिंदबाद को कई आँगनों से होता हुआ एक बड़ी दालान में ले गया जहाँ बहुत- से लोग भोजन करने के लिए बैठे थे। नाना प्रकार के व्यंजन वहाँ रखे थे और इन सब के बीच में एक शानदार अमीर आदमी, जिसकी सफेद दाढ़ी छाती तक लटकी थी, बैठा था। उस के पीछे सेवकों का पूरा समूह हाथ बाँधे खड़ा था। हिंदबाद यह ऐश्वर्य देखकर घबरा गया। उसने झुककर अमीर को सलाम किया। सिंदबाद ने उसके फटे और मैले कपड़ों पर ध्यान न दिया और प्रसन्नतापूर्वक उसके सलाम का जवाब दिया और अपनी दाहिनी ओर बिठाकर उसे सामने अपने हाथ से उठाकर स्वादिष्ट खाद्य और मदिरा पात्र रखा। जब सिंदबाद ने देखा कि सभी उपस्थित जन भोजन कर चुके हैं तो उसने हिंदबाद की ओर फिर ध्यान दिया।
बगदाद में जब किसी का सम्मानपूर्वक उद्बोधन करना होता था तो उसे अरबी कहते थे। सिंदबाद ने हिंदबाद से कहा, ‘अरबी, तुम्हारा नाम क्या है। मैं और यहाँ उपस्थित अन्य जन तुम्हारी यहाँ पर उपस्थिति से अति प्रसन्न हैं। अब मैं चाहता हूँ कि तुम्हारे मुँह से फिर वे बातें सुनूँ जो तुमने गली में बैठे हुए कही थीं।’ सिंदबाद जहाँ बैठा था वह भाग गली से लगा हुआ था और खुली खिड़की से उसने वह सब कुछ सुन लिया था जो हिंदबाद ने रोष की दशा में कहा था।
हिंदबाद ने लज्जा से सिर नीचा कर लिया और कहा, ‘सरकार, उस समय मैं थकन और गरमी के कारण आपे में नहीं था। मेरे मुँह से ऐसी दशा मे कुछ अनुचित बातें निकल गई थीं। इस सभा में उन्हें दुहराने की गुस्ताखी मैं नहीं करना चाहता। आप कृपया मेरी उस उद्दंडता को क्षमा कर दें।’
सिंदबाद ने कहा, ‘भाई, मैं कोई अत्याचारी नहीं हूँ जो किसी की कुछ बातों के कारण ही उस की हानि करूँ। मुझे तुम्हारी बातों पर क्रोध नहीं बल्कि दया ही आई थी और तुम्हारी दशा देखकर और भी दुख हुआ। लेकिन मेरे भाई, तुमने गली में बैठकर जो कहा उस से तुम्हारा अज्ञान ही प्रकट होता है। तुम समझते हो कि यह धन-दौलत और यह ऐश-आराम मुझे बगैर कुछ किए-धरे ही मिल गया है। ऐसी बात नहीं है। मैंने संसार में जितनी विपत्तियाँ पड़ सकती हैं लगभग सभी झेली हैं। इसके बाद ही भगवान ने मुझे आराम की यह सामग्री दी है।’
यह कहकर सिंदबाद ने दूसरे मेहमानों से कहा, ‘मुझ पर विगत वर्षों में बड़ी-बड़ी मुसीबतें आईं और बड़े विचित्र अनुभव हुए। मेरी कहानी सुनकर आप लोगों को घोर आश्चर्य होगा। मैंने धन प्राप्त करने के निमित्त सात बार बड़ी-बड़ी यात्राएँ कीं और बड़े दुख और कष्ट उठाए। आप लोग चाहें तो मैं वह सब हाल सुनाऊँ।’ मेहमानों ने कहा कि जरूर सुनाइए। सिंदबाद ने अपने सेवकों से कहा कि वह बोझा, जो हिंदबाद बाजार से अपने घर लिए जा रहा था, उसके घर पहुँचा दें। उन्होंने ऐसा ही किया। अब सिंदबाद ने अपनी पहली यात्रा का वृत्तांत कहना आरंभ किया।
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